अग्निपथ योजना: युवाओं की नाराजगी और मोदी सरकार की चुनौती

By Palak choudhary

Published on: June 12, 2024

नमस्कार दोस्तों, आप सभी का हमारे आर्टिकल में स्वागत है। दोस्तों जैसा की आप सभी जानते हैं की हाल ही में अग्निपथ योजना, मोदी सरकार द्वारा 2022 में लागू की गई सेना भर्ती योजना, युवाओं में व्यापक विरोध का कारण बनी। चार साल की सेवा के बाद नौकरी की अनिश्चितता से जुड़ी इस योजना ने राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। आज के आर्टिकल मे हम आपको इन विषयो की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। तो आईए जानते हैं संपूर्ण डिटेल-

अग्निपथ योजना क्या है?

Agneepath Yojana, जिसे मोदी सरकार ने 14 जून 2022 को लागू किया था, भारतीय युवाओं के लिए एक नई सेना भर्ती योजना है। इस योजना के तहत, युवाओं को चार साल की अवधि के लिए सेना में भर्ती किया जाता है और उन्हें ‘अग्निवीर‘ का नाम दिया जाता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश की सुरक्षा को मजबूत करना और युवाओं को अनुशासन और रोजगार के अवसर प्रदान करना है। हालांकि, इस योजना के लागू होने के बाद से ही यह विवादों में घिरी रही है और कई जगहों पर इसका जमकर विरोध हुआ है।

योजना का सबसे बड़ा विवाद यह है कि चार साल की सेवा के बाद अग्निवीरों को सेना से बाहर होना पड़ता है, जिससे उनकी नौकरी की स्थिरता पर सवाल खड़े होते हैं। इस योजना को लेकर कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए, रेलें रोकी गईं, वाहनों को आग लगाई गई, और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। इसके बावजूद, मोदी सरकार ने इस योजना को वापस नहीं लिया, जिससे राजनीतिक और सामाजिक विवाद और गहरा हो गया।

एनडीए में जेडीयू का विरोध

एनडीए के घटक दल जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने हाल ही में अग्निपथ योजना को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की। त्यागी का कहना है कि इस योजना को लेकर काफी विरोध हुआ था और चुनावों में इसका सीधा असर देखने को मिला है। जेडीयू का मानना है कि इस योजना पर पुनर्विचार की जरूरत है, खासकर तब जब आगामी बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं।

केसी त्यागी ने बताया कि जब अग्निवीर योजना चलाई गई, तो बड़े तबके में असंतोष था। उनका मानना है कि सेना में भर्ती के लिए तैयार हो रहे युवाओं और उनके परिवारों में इस योजना को लेकर गहरी नाराजगी है, जो चुनावों में भाजपा के खिलाफ वोट देने के रूप में सामने आई। जेडीयू के इस रुख के बाद माना जा रहा है कि मोदी सरकार इस योजना को लेकर पुनर्विचार के लिए मजबूर हो सकती है।

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए, जेडीयू ने इस मुद्दे को उठाया है। जब यह योजना लागू हुई थी, तब बिहार में सैन्य भर्ती की तैयारी कर रहे युवाओं ने भारी विरोध किया था। हालांकि उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं की थी, लेकिन अब चुनाव नजदीक हैं और जेडीयू इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है।

हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और यूपी में विरोध

अग्निपथ योजना को लेकर सबसे ज्यादा विरोध हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश में देखने को मिला है। इन राज्यों में भाजपा की सीटें घट गई हैं, जिसे युवाओं की नाराजगी का परिणाम माना जा रहा है। हरियाणा में भाजपा की सीटें 10 से घटकर 5 हो गईं और वोट शेयर भी कम हो गया।

हरियाणा के युवा बेरोजगारी और अग्निपथ योजना के तहत स्थायी नौकरी की कमी के कारण इस योजना के खिलाफ हो गए हैं। पहले जहां युवाओं में सेना में भर्ती के लिए जोश और उत्साह था, अब वे नशे और अन्य गलत दिशा की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इसके अलावा, हरियाणा के बुजुर्ग भी इस योजना को लेकर असंतुष्ट हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस योजना के आने के बाद सैन्य सेवा का सम्मान घट गया है और इसे अस्थायी नौकरी में बदल दिया गया है।

राजस्थान में भी भाजपा को झटका लगा है, जहां पार्टी की सीटें 24 से घटकर 14 रह गईं। शेखावटी इलाके में, जहां सेना में भर्ती के लिए प्रसिद्ध है, वहां के युवाओं और उनके परिवारों ने इस योजना के विरोध में भाजपा के खिलाफ वोट दिया। इसी तरह, पंजाब में भी भाजपा की सीटें शून्य हो गईं, जहां के ग्रामीण क्षेत्रों के युवा सेना में भर्ती के लिए लालायित रहते थे, लेकिन अग्निपथ योजना के बाद उन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिए।

सेना के रिटायर्ड अफसरों की आलोचना

अग्निपथ योजना को लेकर न केवल युवाओं ने बल्कि सेना के रिटायर्ड अफसरों ने भी जमकर आलोचना की है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल अनिल दुहून और रिटायर्ड मेजर जनरल सीएम सेठ ने इस योजना को लेकर सरकार की जमकर आलोचना की। उनका मानना है कि इस योजना में कई खामियां हैं और इसे किसी भी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता।

रिटायर्ड अफसरों का कहना है कि सरकार को इस योजना को खत्म कर पुरानी, टेस्टेड भर्ती प्रक्रिया को वापस लाना चाहिए। उनके अनुसार, अग्निपथ योजना के तहत भर्ती किए गए जवानों में अनुशासन और दीर्घकालिक सेवाओं के प्रति प्रतिबद्धता की कमी हो सकती है, जिससे देश की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि यह योजना सेना की प्रतिष्ठा और उसकी कार्यक्षमता को कमजोर कर सकती है।

भाजपा के लिए चुनावी चुनौती

अग्निपथ योजना को लेकर भाजपा के सामने एक बड़ी चुनावी चुनौती खड़ी हो गई है। लोकसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत से कम सीटें मिली हैं और उसे जेडीयू और टीडीपी के सहारे सरकार बनानी पड़ी है। जेडीयू के इस मुद्दे को उठाने के बाद माना जा रहा है कि मोदी सरकार इस योजना को लेकर पुनर्विचार के लिए मजबूर हो सकती है।

अग्निपथ योजना को लेकर विपक्ष भी इसे एक बड़ा मुद्दा बना रहा है और आने वाले चुनावों में यह योजना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस योजना के खिलाफ जमकर हमलावर रहे हैं और उन्होंने इसे चुनावों में प्रमुख मुद्दा बनाया। उनका मानना है कि यह योजना युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है और इसे तुरंत खत्म किया जाना चाहिए।

योजना पर पुनर्विचार की जरूरत

कई विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों का मानना है कि अग्निपथ योजना पर पुनर्विचार की जरूरत है। जेडीयू नेता केसी त्यागी का कहना है कि योजना को लेकर युवाओं में काफी असंतोष है और इसके चलते चुनावों में भाजपा को नुकसान हुआ है। सेना के रिटायर्ड अफसरों का भी मानना है कि इस योजना में कई समस्याएं हैं और इसे किसी भी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता।

इस प्रकार, सरकार को इस योजना पर पुनर्विचार करना चाहिए और पुरानी भर्ती प्रक्रिया को वापस लाना चाहिए। इससे न केवल सेना की प्रतिष्ठा बनी रहेगी बल्कि युवाओं में भी सेना में भर्ती के लिए उत्साह बना रहेगा। इसके अलावा, सरकार को युवाओं के भविष्य के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उन्हें स्थायी नौकरी की सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।

भविष्य की राह

अग्निपथ योजना को लेकर मोदी सरकार पर पुनर्विचार का दबाव बढ़ता जा रहा है। जेडीयू और अन्य विपक्षी दलों के विरोध के बाद सरकार इस योजना पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हो सकती है। हालांकि, सरकार की तरफ से अभी तक कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है, लेकिन भविष्य में इस योजना को लेकर कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर सरकार पर दबाव बना रहा है और आने वाले चुनावों में यह एक प्रमुख मुद्दा बन सकता है।

इस प्रकार, अग्निपथ योजना को लेकर मोदी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है और यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है। सरकार को युवाओं और सेना के हितों को ध्यान में रखते हुए इस योजना पर पुनर्विचार करना चाहिए और देश की सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।

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